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Ep-289 4S Pillars of Spiritual Life
Manage episode 361590810 series 2860669
हरि हरि बोल प्यारे प्रभु प्रेमियों 🙏श्रीमद भगवद गीता की जय🙏आज के आनंद की जय🙏बहुत बहुत आभार नीलू जी इतना आनंद मय सत्संग देने के लिए🙏 आज का सत्संग बहुत ही प्यारा था,आज का विषय था अध्यात्म के चार सतंभ फ्रेंड्स प्रभु जी की प्रेणा से निखिल जी ने हम सब मंद बुद्धि लोगो के लिए ये माडल त्यार किया फ्रेंड्स आज के समय हर इंसान खुशी चाहता कल हमने समझा था कैसे कोई सम्पूर्ण स्वास्थ और सम्पूर्ण खुश रह सकता तो फ्रेंड्स कल हमने समझा था संपूर्ण खुश रहने के लिए आध्यात्मिक स्वास्थ हमारा अच्छा होना चाहिए तो आज समझेंगे आध्यात्मिक स्वास्थ रहने के लिए हमे अध्यात्म के चार सतंभ जो है उनको मजबूत करना जैसे कोई बिल्डिंग त्यार होती है तो उसके चार दीवार बनाई जाती ठीक उसी प्रकार अध्यात्म की नीव पक्की करने के लिए हमें अध्यात्म के चार समतंभ मजबूत करने पहला है सत्संग=सत्संग कई प्रकार से होता जैसे हम लोग गोलोक एक्सप्रेस से कर रहे घर बैठे बिठाए ऑनलाइन भगवद गीता पढ़ना,मंदिर में जाके भजन गाना,सतपुर्षो का संग करना मतलब सत्य का संग करना 2.साधना=साधना मतलब मन को साधना अगर सत्संग हमारा स्कूल तो साधना हमारा होम वर्क सत्संग की बातो को मनन करना जीवन में उतारना ही हमारी साधना,साधना में हम लोग नाम जप करते,भोग लगाते,उपवास करतेप्रभु का सिंगार करते ये सब साधना में आते 3.सेवा=अब सत्संग सुनेगे,साधना करेंगे तो अंहकार का नाश होगा सेवा भाव आएगा अपना हर कर्म अब सेवा बन जायेगा सेवा बहुत प्रकार से होती कोई तन से सेवा करता कोई मन से कोई धन से। D.सदाचार=सत्संग साधना सेवा करेंगे तो ऑटोमैटिक हमारा वव्यहार बदलेगा सदाचार आएगा क्योंकि सत्संग को जीवन में उतरेंगे तो साधना होगी फिर सेवा भाव बनता इससे हमारा सदाचार निखरता है एक छोटी सी exmple से समझते एक संत होते उनके पास एक व्यक्ति आता बोलता मेरा स्वभाव नही बदलता तो संत ने कहा ये टोकरी ले जा और इसमें पानी भर व्यक्ति नदी के पास जाता उसमे टोकरी डालता टोकरी में छेद थे पानी सारा निकल जाता लेकिन अपने गुरु की आज्ञा थी करता गया फिर जब गुरु आते तो वो व्यक्ति बोलता इस टोकरी में पानी नहीं भरा जा सकता क्योंकि ये टोकरी में छेड़ है तो गुरु जी बोलते निरंतर टोकरी पानी में रहने से साफ हो गई है यही तुम्हारा सवाल का जवाब अगर सत्संग में रहोगे उनकी बातो को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकल दोगे तब भी इस टोकरी की तरह तेरा अंत कर्ण धीरे धीरे निखर जाएगा अगर सत्संग की बातो पर विचार करके जीवन में उतरोगे तो जीवन निखर जाएगा यही सदाचार होगा।
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हरि हरि बोल प्यारे प्रभु प्रेमियों 🙏श्रीमद भगवद गीता की जय🙏आज के आनंद की जय🙏बहुत बहुत आभार नीलू जी इतना आनंद मय सत्संग देने के लिए🙏 आज का सत्संग बहुत ही प्यारा था,आज का विषय था अध्यात्म के चार सतंभ फ्रेंड्स प्रभु जी की प्रेणा से निखिल जी ने हम सब मंद बुद्धि लोगो के लिए ये माडल त्यार किया फ्रेंड्स आज के समय हर इंसान खुशी चाहता कल हमने समझा था कैसे कोई सम्पूर्ण स्वास्थ और सम्पूर्ण खुश रह सकता तो फ्रेंड्स कल हमने समझा था संपूर्ण खुश रहने के लिए आध्यात्मिक स्वास्थ हमारा अच्छा होना चाहिए तो आज समझेंगे आध्यात्मिक स्वास्थ रहने के लिए हमे अध्यात्म के चार सतंभ जो है उनको मजबूत करना जैसे कोई बिल्डिंग त्यार होती है तो उसके चार दीवार बनाई जाती ठीक उसी प्रकार अध्यात्म की नीव पक्की करने के लिए हमें अध्यात्म के चार समतंभ मजबूत करने पहला है सत्संग=सत्संग कई प्रकार से होता जैसे हम लोग गोलोक एक्सप्रेस से कर रहे घर बैठे बिठाए ऑनलाइन भगवद गीता पढ़ना,मंदिर में जाके भजन गाना,सतपुर्षो का संग करना मतलब सत्य का संग करना 2.साधना=साधना मतलब मन को साधना अगर सत्संग हमारा स्कूल तो साधना हमारा होम वर्क सत्संग की बातो को मनन करना जीवन में उतारना ही हमारी साधना,साधना में हम लोग नाम जप करते,भोग लगाते,उपवास करतेप्रभु का सिंगार करते ये सब साधना में आते 3.सेवा=अब सत्संग सुनेगे,साधना करेंगे तो अंहकार का नाश होगा सेवा भाव आएगा अपना हर कर्म अब सेवा बन जायेगा सेवा बहुत प्रकार से होती कोई तन से सेवा करता कोई मन से कोई धन से। D.सदाचार=सत्संग साधना सेवा करेंगे तो ऑटोमैटिक हमारा वव्यहार बदलेगा सदाचार आएगा क्योंकि सत्संग को जीवन में उतरेंगे तो साधना होगी फिर सेवा भाव बनता इससे हमारा सदाचार निखरता है एक छोटी सी exmple से समझते एक संत होते उनके पास एक व्यक्ति आता बोलता मेरा स्वभाव नही बदलता तो संत ने कहा ये टोकरी ले जा और इसमें पानी भर व्यक्ति नदी के पास जाता उसमे टोकरी डालता टोकरी में छेद थे पानी सारा निकल जाता लेकिन अपने गुरु की आज्ञा थी करता गया फिर जब गुरु आते तो वो व्यक्ति बोलता इस टोकरी में पानी नहीं भरा जा सकता क्योंकि ये टोकरी में छेड़ है तो गुरु जी बोलते निरंतर टोकरी पानी में रहने से साफ हो गई है यही तुम्हारा सवाल का जवाब अगर सत्संग में रहोगे उनकी बातो को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकल दोगे तब भी इस टोकरी की तरह तेरा अंत कर्ण धीरे धीरे निखर जाएगा अगर सत्संग की बातो पर विचार करके जीवन में उतरोगे तो जीवन निखर जाएगा यही सदाचार होगा।
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