तू लम्हा नहीं...जिंदगी थी मेरी
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तेरे आंसू की खातिर मैं बिकता रहा
दर्द कितना सहा तुझको दिखता रहा
तूने मेरी मोहब्बत की तौहीन की
ज़ख्म ऐसे दिए के मैं रिसता रहा
ना समझा तुझे ना तेरी चाहते
नाम " मासूम " तेरा मैं लिखता रहा
तूने ठुकरा दिया प्यार मेरा सनम
मेरे ख्वाबों फिर भी तू आती रही
साँस आती रही...साँस जाती रही
धड़कने मेरी तुझको बुलाती रहीं
.....क्योंकि...
तू लम्हा नहीं ....जिन्दगी थी मेरी
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