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प्रयाण गीत (पञ्चचामर छंद)

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अजेय सैनिकों चलो, लिये तिरंग हाथ में।

समक्ष शत्रु क्या टिके, समस्त हिन्द साथ में॥

ललाट गर्व से उठा, स्वदेश भक्ति साथ है।

अशीष मात का मिला, असीम शक्ति हाथ है॥

चले चलो बढ़े चलो, कि देश है पुकारता।

सवाल आज आन का, कि आस से निहारता॥

सदैव शौर्य जीतता, कि शक्ति ही महान है।

कि वीर की वसुंधरा, यही सदा विधान है॥

चढ़ा लहू कटार से, यहाँ उतार आरती।

भले तू खंड-खंड हो, रहे अखंड भारती॥

महान मातृभूमि का, चुका सकें न ऋण कभी।

यहीं जियें यहीं मरें, सपूत मात के सभी॥

खड़े रहें डटे रहें, थकान भूख प्यास में।

स्वदेश प्रेम आपकी, बसा प्रत्येक श्वास में॥

हिमाद्रि मार्ग में खड़ा, उतंग तुंग तोड़ दो।

प्रवाहिनी जहाँ दिखे, नदी प्रवाह मोड़ दो॥

असंख्य शत्रु सामने, गिरे न स्वेद भाल से।

स्वदेश के लिए लड़ो, महा कराल काल से॥

अतीव कष्ट भी मिले, न शीश ये कभी झुके।

न लोभ मोह में फँसे, जवान ये नहीं रुके॥

अदम्य साहसी सभी, नहीं करें अधीरता।

न अस्त्र से न शस्त्र से, जयी सदैव वीरता॥

अनन्य देश प्रेम है, सदैव वो रहे डटे।

समस्त विश्व साक्ष्य है, न युद्ध से कभी हटे॥

अराति हिन्द पे चढ़ा, प्रचंड वार के लिए।

भुजा सशक्त है दिखा, उठा प्रहार के लिए॥

अक्षम्य कृत्य दुष्ट का, इसे क्षमा नहीं करो।

कि काट शीश शत्रु के, समुद्र रक्त से भरो॥

अजेय शूर वीर तू, उठा धनुष कृपाण को।

कि भेद लक्ष्य व्योम में, चला अचूक बाण को॥

समाप्त शत्रु आज हो, समस्त दम्भ को हरो।

उठा सके न शीश फिर, समूल नाश तुम करो॥

न मौत अंत वीर का, कथा समस्त जग कहे।

समान सूर्य चंद्र के, सदैव विश्व में रहे॥

न तू न मैं न ये बड़ा, बड़ा स्वदेश है सदा।

सदैव स्वाभिमान हो, स्वतंत्र राष्ट्र सर्वदा॥

प्रयाण गीत गा रहे, स्वदेश भक्ति काम है।

जवान को प्रणाम है, प्रणाम है प्रणाम है॥

स्वरचित - विवेक अग्रवाल 'अवि'

(भारतीय सेना और श्री जय शंकर प्रसाद जी को समर्पित)

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समक्ष शत्रु क्या टिके, समस्त हिन्द साथ में॥

ललाट गर्व से उठा, स्वदेश भक्ति साथ है।

अशीष मात का मिला, असीम शक्ति हाथ है॥

चले चलो बढ़े चलो, कि देश है पुकारता।

सवाल आज आन का, कि आस से निहारता॥

सदैव शौर्य जीतता, कि शक्ति ही महान है।

कि वीर की वसुंधरा, यही सदा विधान है॥

चढ़ा लहू कटार से, यहाँ उतार आरती।

भले तू खंड-खंड हो, रहे अखंड भारती॥

महान मातृभूमि का, चुका सकें न ऋण कभी।

यहीं जियें यहीं मरें, सपूत मात के सभी॥

खड़े रहें डटे रहें, थकान भूख प्यास में।

स्वदेश प्रेम आपकी, बसा प्रत्येक श्वास में॥

हिमाद्रि मार्ग में खड़ा, उतंग तुंग तोड़ दो।

प्रवाहिनी जहाँ दिखे, नदी प्रवाह मोड़ दो॥

असंख्य शत्रु सामने, गिरे न स्वेद भाल से।

स्वदेश के लिए लड़ो, महा कराल काल से॥

अतीव कष्ट भी मिले, न शीश ये कभी झुके।

न लोभ मोह में फँसे, जवान ये नहीं रुके॥

अदम्य साहसी सभी, नहीं करें अधीरता।

न अस्त्र से न शस्त्र से, जयी सदैव वीरता॥

अनन्य देश प्रेम है, सदैव वो रहे डटे।

समस्त विश्व साक्ष्य है, न युद्ध से कभी हटे॥

अराति हिन्द पे चढ़ा, प्रचंड वार के लिए।

भुजा सशक्त है दिखा, उठा प्रहार के लिए॥

अक्षम्य कृत्य दुष्ट का, इसे क्षमा नहीं करो।

कि काट शीश शत्रु के, समुद्र रक्त से भरो॥

अजेय शूर वीर तू, उठा धनुष कृपाण को।

कि भेद लक्ष्य व्योम में, चला अचूक बाण को॥

समाप्त शत्रु आज हो, समस्त दम्भ को हरो।

उठा सके न शीश फिर, समूल नाश तुम करो॥

न मौत अंत वीर का, कथा समस्त जग कहे।

समान सूर्य चंद्र के, सदैव विश्व में रहे॥

न तू न मैं न ये बड़ा, बड़ा स्वदेश है सदा।

सदैव स्वाभिमान हो, स्वतंत्र राष्ट्र सर्वदा॥

प्रयाण गीत गा रहे, स्वदेश भक्ति काम है।

जवान को प्रणाम है, प्रणाम है प्रणाम है॥

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